।। गृहस्थ गीता के अनमोल वचन ।।
चार चीजों का जीवन में महत्व
गृहस्थ गीता के अनमोल वचन
🔥 यह चार चीजें पहले कमजोर दिखती है…
लेकिन ध्यान ना देने पर… आगे बड़ी हो जाती है
और दुःख का कारण भी बनती है…
अग्नि, रोग, ऋण और पाप…!
🙏 इन चार चीजो का नित्य सेवन करते रहना चाहिए…
सत्संग, संतोष, दान और दया…!
🙏 इन चार अवस्थाओ में आदमी अक्सर बिगड़ जाता है…
जवानी, धन, अधिकार और अविवेक…!
🙏 यह चार चीजे मानव को बड़े ही किस्मत से मिलते है…
ईश्वर को याद रखने का झुकाव… संतजनों की संगत…
चरित्र में निर्मलता… और उदारता…!
🙏 यह चार गुण बहुत ही दुर्लभ है…
धन में पवित्रता…. दान में विनय…. वीरता में दया…
और अधिकार में निराभिमानता…!
🙏 इन चार चीजो पर भरोसा कभी मत करो…
बगैर जीता हुआ मन… शत्रु का अपनापन….
स्वार्थी व्यक्ति की चाटुकारिता….
और बाजारू ज्योतिषियों की भविष्यवाणी…!
🙏 चार चीजो पर हमेशा विश्वास रखो…
सत्य… पुरुषार्थ… स्वार्थहीन…. और मित्र…!
🙏 यह चार चीजे एक बार निकल गई तो
फिर वापस लौटकर नहीं आती…
मुह से निकली हुई बात…. बाण से निकला तीर….
बीत गई हुई उम्र… और मरा हुआ ज्ञान…!
🙏 इन चार बातों को हमेशा याद रखे…
दूसरे के द्वारा अपने ऊपर किया गया उपकार….
अपने द्वारा दूसरे पर किया गया अपकार… मृत्यु और भगवान…!
🙏 इन चार के संगत से हमेशा बचने की कोशिश करे…
नास्तिक… अन्याय का धन…. परायी नारी और परनिन्दा…!
🙏इन चार चीजो पर इंसान का बस नहीं चलता…
जीवन… मरण… यश… और अपयश…!
🙏 इन चार का परिचय चार अवस्थाओं में मिलता है…
गरीबी में मित्र का…. दरिद्रता में पत्नी का… युद्ध में शूरवीर का….
और बदनामी में भाई-बन्धुओं का…!
🙏 इन चार बातों में मानव का कल्याण है…
वाणी के सयंम में… कम सोने में…. कम खाने में…. और
एकांत के भगवत स्मरण में…!
🙏 शुद्ध साधना के लिए इन चार बातो का पालन आवश्यक है…
भूख से कम खाना… लोक प्रतिष्ठा का त्याग….. गरीबी का स्वीकार….
और प्रभु की इच्छा में ही संतोष…!
गृहस्थ गीता के अनमोल वचन
🙏 चार प्रकार के मनुष्य होते है…
(१) मक्खीचूस – ना ही खुद खाय और ना ही दुसरो को दे…!
(२) कंजूस – खुद तो खाय लेकिन दुसरो को ना दे…!
(३) उदार – खुद भी खाये और दूसरे को भी दे…!
(४) दाता – खुद ना खाए, परन्तु दूसरे को दे…!
अगर सभी लोग दाता नहीं बन सकते…
तो कम से कम उदार तो जरूर बनना ही चाहिए…!
🙏 मन के चार प्रकार है…
धर्म से विमुख मानव का मन मुर्दा है… पापी का मन रोगी है…..
लोभी और स्वार्थी का मन आलसी है… और
भजन साधना में तत्पर का मन स्वस्थ है…!
जय श्री राम