Nirjala Ekadashi | एकादशी
निर्जला एकादशी, व्रत, कथा, महत्व
निर्जला एकादशी
हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का महत्व सिर्फ धार्मिक ही नहीं है बल्कि यह व्रत शारीरिक
और मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी से भी काफी महत्त्वपूर्ण है.
एकादशी का व्रत बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है. पूर्ण वर्ष में चौबीस एकादशियां होती हैं.
जिस वर्ष अधिकमास या मलमास होता है… उस वर्ष में दो एकादशी बढ़कर 26 एकादशी
हो जाती है. इन्हीं एकादशी में से एक ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को
निर्जला एकादशी कहते है.
सभी एकादशियों में से यह एकादशी सर्वोत्तम मानी गई है.
इस व्रत में पानी पिना मना है, इसिलिये इसे निर्जला एकादशी कहते हैं.
निर्जला एकादशी व्रत की मान्यता है की, इस एकादशी का व्रत रखने से सभी एकादशियों
के व्रतों के फल की प्राप्ति सहज ही हो जाती है. यह व्रत स्त्री और पुरुष दोनों को ही करना
चाहिए. एकादशी का व्रत भगवान विष्णु की आराधना को समर्पित होता है. इस एकादशी
का व्रत करके श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार दान करना चाहिए.
इस प्रकार जो इस पवित्र एकादशी का व्रत करता है, वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है.
एकादशी व्रत कथा
एक बार पांचो पांडव महर्षि व्यासजी के मुख से सभी एकादशी को निराहार रहने का नियम
सुन रहे थे. इसपर भीम ने बड़े ही विनम्र भाव से कहा की गुरुवर…! मै भूक बर्दास्त नहीं
करा सकता और भोजन भी मै अधिक मात्र में ही ग्रहण करता हु.
मुझसे किसी भी प्रकार व्रत नही किया जाता, दिन भर बड़ी तीव्र भूक बनी ही रहती है.
इसीलिए आप से विनती है की, आप कोई ऐसा उपाय या कोई व्रत बताएं जिसके करने
से ही सभी व्रत के फल मिल जाये.
महर्षि व्यास जी भलीभांति जानते थे कि भीमसेन के उदर में वृक नामक अग्नि है,
इसीलिए अधिक मात्रा में भोजन करने पर भी भीम की भूख शांत नहीं होती.
उस पर व्यासजी ने कहा की, भीम, तुमसे वर्षभर की सभी एकादशी तो नहीं हो सकती,
इसलिए तुम सिर्फ एक निर्जला एकादशी ही कर लो, इस एक एकादशी के व्रत से वर्षभर
की सभी एकादशी करने जैसा फल मिल जायेगा. और भीम ने ऐसा ही किया और उन्हें
स्वर्ग की प्राप्ति हुई.
इसलिए इस एकादशी को भीमसेनी एकादशी या पांडव एकादशी भी कहते है.
निर्जला एकादशी का महत्व
निर्जला यानि यह व्रत बिना पानी पिए और उपवास रखकर किया जाता है. इसलिए यह व्रत
कठिन तप और साधना के समान महत्त्व रखता है. वर्ष में सिर्फ निर्जला एकादशी का व्रत कर
लेने से अधिकमास की दो एकादशियों सहित वर्ष की सभी 25 एकादशी व्रत का फल मिलता
है. जहाँ वर्ष भर की दूसरी एकादशी के व्रत में कुछ खाने की सख्ती का महत्त्व है…
वहीं निर्जला एकादशी के दिन कुछ खाने के साथ साथ ही पानी की भी सख्ती बहुत ज़रूरी
है. इस व्रत में पानी नहीं पीते है यानि निर्जल रहकर व्रत का पालन किया जाता है. यह व्रत
मन को संयमित बनाता है और शरीर को नई ऊर्जा देता है. इस व्रत को महिला और पुरुष
दोनों ही कर सकते है.
व्रत विधान
१) इस दिन पवित्रीकरण के समय जल आचमन के अलावा अगले दिन सूर्योदय तक पानी
नहीं पिया जाता. इसलिए यह व्रत अत्यधिक श्रम साध्य होने के साथ−साथ कष्ट और
संयम साध्य भी है.
२) इस दिन निर्जल व्रत करते हुए श्री भगवान विष्णु की आराधना का विशेष महत्व है.
इस एकादशी का व्रत करके यथासंभव अन्न, वस्त्र, छतरी, जूता, पंखी तथा फल आदि का
दान करना चाहिए. इस दिन जल कलश का दान करने वालों को वर्ष भर की
एकादशियों का फल, लाभ प्राप्त हो जाता है.
३) कोशिश करे की दिनभर मौन रहे, बोलना आवश्यक हो तो कम और धीरे बोले.
४) ब्रह्मचर्य का पालन करें.
५) झूठ ना बोलें, गुस्सा और विवाद ना करें.
हरी ॐ
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः
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