हिंदी कहानी, अनपढ़ बेटा | दिल छु जाने वाली हिंदी कहानी, Story
पटले जी पोस्ट मास्टर के पद से चार महीने पहिले रिटायर हुए.
एक महिना तो दोस्त, रिश्तेदार का खूब आना जाना रहा.
पिछले तीन महीने से तो सभी पटले जी घर का रास्ता
भूल गए, इसी बात को लेकर पटले जी दु:खी रहने लगे.
आज सुबह पटले जी ने पोस्टमेन को जाते देख उसे आवाज लगाई
और थोड़ी देर साथ बैठने की विनंती की, पोस्टमेन भी
अपने पुराने अधिकारी का मान रखने बैठ गए.
पटले जी की पत्नी गरमा गरम चाय लेके आयी. तीनो बाते करते हुए
चाय का आनंद ले रहे थे, तभी अचानक पोस्टमैन को कुछ काम
याद आया तो जाने की इजाजत मांगी तभी पटले जी
और उनकी पत्नी चेहरा उतर गया.
पोस्टमेन को समजते देर नहीं लगी, वो और कुछ देर
पटले जी के पास बैठे, उनके दुःख का कारण पूछा तो
उन्होंने सारी बात बतायी.
पोस्टमेन बोला, साहब यहाँ थोड़ी दुरी पर नगर निगम ने बहोत ही सुंदर
बाग बनाया है, वहा काफी बुजुर्ग आते है ,आप भी जाए और नए मित्र बनाये,
पटले जी को सुझाव काफी अच्छा लगा.
हिंदी कहानी | अनपढ़ बेटा
उन्होंने अगली सुबह का बड़ी ही बेसब्री से इंतजार किया, सुबह होते ही पत्नी
के साथ निकल पड़े मोर्निंग वाक पे, अब पटले जी की यही दिनचर्या हो गई,
कुछ नए दोस्त भी बने, कुछ साल निकल गए.
आज भी पटले जी नित्य की तरह पत्नी के साथ मोर्निंग वाक निकले थे की,
अचानक पीछे से आ रही एक लॉरी, पटले जी की पत्नी को टक्कर मार के
आगे निकल जाती है.
सर पे गहरी चोट लगने की वजह से खून बहुत तेजी से बहने लगता है,
बाजु में ही पार्क में टहल रहे कुछ लोग दौड़ के आते है और उनकी मदद से
पटले जी पत्नी को जैसे तैसे हॉस्पिटल में भर्ती करके अपने बड़े डॉक्टर बेटे को
फोन करके बताते है…
बेटा तुम्हारे माँ की हालत गंभीर है, कुछ पैसो की जरूरत है. और तुम्हारी माँ को
खून भी देना है. बेटा फ़ोन पे कहता है… पापा, मैं बहुत व्यस्त हूँ आजकल.
मै नहीं आ पाउँगा. मुझे विदेश मे बहोत बड़े हॉस्पिटल में नौकरी का पैकेज मिला है
तो उसी की तैयारी कर रहा हूँ. आपका भी तो यही सपना था ना…?
इसलिये हाथ भी तंग चल रहा है. पैसे की व्यवस्था कर लीजिए मैं बाद मे दे दुँगा.
अपने बड़े डॉक्टर बेटे के जबाब सुनने के बाद उन्होनें अपने दुसरे बेटे
जो की CA है, उसे फोन करते है तो, उसने भी आने से मना कर दिया.
उसे अपने व्यापारी ग्राहकों का अकाउंट सेट करना था. हाँ, बेटे ने इतना
जरुर कहा कि पैसों की चिंता मत कीजिए, मै भिजवा दूँगा.
यह अलग बात है कि उसने कभी पैसे नहीं भिजवाए……!
हिंदी कहानी | अनपढ़ बेटा
उन्होंने बहुत ही मायुसी से फोन रख दिया. अब उनका अपने तीसरे बेटे को
फ़ोन लगाने का मन नहीं कर रहा था, क्योकि वो अनपढ़ होने से पटले जी
उसे अनपढ़ समजते थे, और अनपढ़ को फोन करके से क्या फायदा…..!
जब ये दो शिक्षित बेटे कुछ नही कर रहे तो वो अनपढ़ क्या कर लेगा…..?
इन विचारो के साथ दुःखी मन से पत्नी के पास हॉस्पिटल में बैठ गए,
बैठे बैठे उन्हें पुराणी बाते याद आने लगी, पटलेजी को तीन बेटे और
एक बेटी थी. बडा डॉक्टर और दूसरा बेटा CA था. दोनौ की शादी
अच्छे पैसेवाले घर की लडकियों से हुई थी. दोनो अपनी पत्नियों के
साथ अलग अलग शहरों मे रहते थे.
बेटी की शादी भी उन्होंने बड़े ही धुमधाम से की थी.
तीसरा वाला छोटा बेटा पढाई में कमजोर था.
उसका मन पढाई में नहीं लगता था.
दसवी कक्षा में फेल होने के बाद उसने पढन बंद कर दिया
और घर पे ही रहने लगा.
पटले जी बहोत नाराज हुवे तो कहने लगा की मै घर में रहकर
आप दोनों की सेवा करूंगा. नाराज होकर उन्होंने उसका नाम
अनपढ़ रख दिया. दोनों बडे भाई पिता के आज्ञाकारी
थे, पर वह गलत बात पर उनसे भी बहस कर बैठता था….
इसलिये पटले जी उसे पसंद नही करते थे.
जब पटले जी रिटायर हुए तो जमा पुँजी कुछ भी नही थी.
सारी बचत दोनों बच्चों की उच्च शिक्षा और बेटी की शादी मे
खर्च हो गई थी.
उनका गाव में और पास के शहर मे भी एक घर था.
रिटायर होने के बाद पटले जी गाँव का घर और जमीन
छोटे बेटे को देकर शहर वाले घर में रहने चले गए,
घर का खर्च उनके पेंशन से चल रहा था.
हिंदी कहानी | अनपढ़ बेटा
कुछ दिनों बाद पटलेजी को जब लगा कि छोटा सुधरने वाला नही
तो उन्होंने बँटवारा कर दिया. और उसके हिस्से की जमीन उसे देकर
उसे गाँव मे ही रहने रहने दिया.
हालाँकि वह रहना नही चाहता था पर पिता की जिद के आगे झुक गया
और गाँव मे रहने लगा. पटले जी कभी भी छोटे बेटे का जिक्र भी
नहीं करते थे. दोनों बेटों की खुप तारीफ करते.
गर्व से अपना सिर ऊँचा करते.
बाबूजी बाबूजी सुन कर ध्यान टुटा तो देखा सामने वही अनपढ़ खड़ा था.
उन्होंने गुस्से से मुँह फेर लिया पर उसने बाबुजी के पैर छुए और रोते हुए बोला..
बाबूजी आपने इस अनपढ़ को क्यो नही बताया….?
खबर मिलते ही भागा आया हूँ. बाबूजी के विरोध के वावजुद उसने
अपनी माँ को एक बडे अस्पताल मे भरती कराया.
डॉक्टर ने ब्रेन का आपरेशन बताया.
माँ का सारा इलाज किया. दिन रात अपनी माँ की सेवा की, माँ जब
पूरी तरह ठीक हुई और लगा की अस्पताल से एक दो दिन में छुट्टी
हो जाएगी तो बेटा दो दिनों के लिए गाँव गया.
दो दिन बाद आकर, अस्पताल से छूट्टी लेकर माँ बाप को घर ले आया,
पटले जी ने खर्चे के बारे में पूछा तो बताया की वो धर्मार्थ अस्पताल था,
मुफ्त में इलाज हुवा है, जब माँ पूरी तरह ठीक हो गयी तो माँ बाप को
शहर वाले घर में छोड़कर छोटा बेटा अपने गावं लौट आया.
धीरे धीरे सब कुछ सामान्य हो गया. एक दिन यूँ ही उनके मन मे आया कि
उस नालायक की खबर ली जाए.
दोनों जब गाँव में पहुँचे तो घर पे ताला लगा था, पटलेजी ने सोचा की शायद
खेत में होगा.
दोनों खेत पहुचे, उनके खेत मे काम कर रहे आदमी से पुछा तो
उसने कहा… यह खेत अब मेरे हैं. क्या…? पर यह खेत तो….
उन्हे बहुत आश्चर्य हुआ. हाँ….! उसकी माँ की तबीयत बहुत खराब थी.
उसके पास पैसे नही थे तो उसने अपने सारे खेत बेच दिये.
वह रोजी रोटी की तलाश मे दुसरे शहर चला गया है.
पटले जी वापस गाव के घर मी आये, ताला तोड के अंदर प्रवेश किया तो,
उन्हे अनपढ़ कि याद आ गई…!
हिंदी कहानी | अनपढ़ बेटा
टेबल पर पडा लिफाफा खोल कर देखा तो उसमे रखा अस्पताल का
चौदा लाख का बिल उनको मुँह चिढाने लगा. अचानक उनकी आँखों से
आँसू गिरने लगे और वह जोर से
चिल्लाये – तु कहाँ चला गया अनपढ़….. अपने पापा को छोड कर.
एक बार वापस आ जा फिर मैं तुझे कहीं नही जाने दुँगा.
उनकी पत्नी के आँसू भी बहे जा रहे थे. और पटले जी को इंतजार था
अपने अनपढ़ बेटे को अपने गले से लगाने का…!
सचमुच वो पूरा अनपढ़ ही था.
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