Hindi kahani | ईश्वर पर विश्वास | Hindi Motivational Story | हिंदी कहानी
दवाखाना और रहना उसी घर में था, उनकी दिनचर्या इस तरह थी… सुबह पाच बजे उठ जाते, थोड़ी
दुर टहलके वापस आते और नित्यकर्म से निवृत्त होकर स्नान करते, और जो भी बना है वो खाकर
मरीजो की सेवा करने के भाव से अपने दवाखाने में आते थे, दवाखाने में आने से पहले उनकी पत्नी
उन्हें रोज की जरूरत के सामान की एक चिठ्ठी देती.
वैद्यजी उस चिट्टी को अपने जेब में रख कर दवाखाने में आते.
आते ही सबसे पहले ईश्वर को नमस्कार करते, अपनी कुर्शी पर बैठते थे. सबसे पहले ईश्वर का
नाम लेकर पत्नी ने दी हुई चिठ्ठी को खोलकर पढ़ते और वो सामान खरीदने के लिए जितने पैसे
लगेंगे इसका हिसाब लगाते, फिर ईश्वर से प्रार्थना करते की हे ईश्वर मै सिर्फ आपके आदेश का
पालन करते हुए आपकी भक्ति को छोड़कर इस प्रपंच के चक्कर को निभा रहा हु, ये बोलकर
वैद्यजी अपना इलाज करना सुरु करते थे.
उनकी ये विषेशता थी की कभी भी वो किसी मरीज से पैसे नहीं मांगते थे, वो खुशी से जोभी दे
वो ठीक और नहीं देने पर भी ठीक. इस तरह उनके चिठ्ठी में लिखे सामान के लिए पैसे पुरे होते
ही बाद वाले किसी भी मरीज से पैसे नहीं लेते थे, चाहे वो मरीज कितना भी पैसेवाला क्यों ना हो…!
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पत्नी ने दी हुई चिठ्ठी को पढने लगे, रोज के जरूरतों के बाद निचे की लाईन पढ़ते ही वैद्यजी को
दिन मे ही तारे दिखने लगे, उनका दिमाग घुमने लगा, जैसे तैसे खुद को सँभालते हुए फिर चिट्ठी
पे नजर घुमाई, चावल.दाल, आटा, सब्जी आदि के बाद पत्नी ने लिखा था – बेटी की शादी 22
तारीख को है… उसके दहेज का सामान…. कुछ देर तो वैद्यजी सोचते रहे…
फिर बाकी चीजों की क़ीमत लिखने के बाद वैद्यजी ने दहेज के सामने लिखा,
“ यह काम तो ईश्वर का है का है… ईश्वर ही जाने.”
उस दिन दवाखाने में तीन ही रोगी आए थे, उन्हें वैद्यजी दवाई दे रहे थे… तभी इसी एक बड़ी सी
कार उनके दवाखाने के सामने आकर रुक गई. वैद्यजी ने कोई ध्यान नहीं दिया, क्योंकि कई
कारों वाले उनके पास आते ही रहते थे. तीनो रोगी दवाई लेकर चले गए. दवाखाने के सामने रुकी
हुई कार से एक साहब बाहर निकले. उनके कपडे और स्टाइल से लग रहा था की वो बहोत ही
अमीर आदमी है.
वो सीधे दवाखाने के अंदर आये, वैद्यजी को हाथ जोड़कर नमस्ते किया. और वही दिवार से लगे
हुये बेंच पर बैठ गए, वैद्यजी बोले आपको अगर दावा चाहिए तो मेरे पास आइये, मै आपकी नाड़ी
देखकर रोग का पता लगाऊंगा, अगर किसी दुसरे रोगी के लिए दवा लेकर जाना हो तो,
उसके रोग के लक्षण बताये.
कार वाले साहब बोले- वैद्यजी आप मुझे नहीं पहचानते, मै आपके दवाखाने में लगभग
16 – 17 वर्ष के बाद आया हु. मेरा नाम मनोहरलाल है, पहली बार जब मै आपके दवाखाने में आया
तो शायद ईश्वर ने ही मुझे भेजा था. उस दिन कुछ ऐसा हुवा था की, इसी रस्ते से मै अपने बहन के गाँव
जा रहा था, तेज धुप थी, नवतपा चल रहा था, उस गर्मी में मेरी कार ठीक आपके दवाखाने के सामने
ही ख़राब हो गयी, कर का इंजिन गरम हो गया था, ड्राईवर उसे ठंडा करने की कोशिश कर रहा था,
इधर धुप से मेरा जी घबरा रहा था, तभी आप पास आये और मुझे अपने दवाखाने में बैठने को कहा…
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मै आपके दवाखाने के कुर्सी पर बैठ गया, मुझे अब ठीक लग रहा था, मै मन ही मन आपको
धन्यवाद् कह रहा था, ड्रायवर को इंजिन ठंडा करने को बहोत समय लगा.
आप भी अपने कुर्सी पे बैठ गए, आपके पास एक छोटी सी बेटी खडी थी,
वो आपको बार बार बाबुजी चलिए ना, मुझे बहोत जोरो की भुक लगी है,
आप कह रहे थे, चलेंगे बेटा, थोड़ो देर रुको, मुझे बहुत ही शर्मिंदगी महसुस हो रही थी,
मै इतनी देर से बैठा हु और मेरे ही कारन आपको खाना खाने में देर हो रही है,
बाहर गर्मी इतनी थी की… मेरी हिम्मत भी नहीं हो रही थी की… उठकर अपनी कार के पास चले
जाऊ, फिर मुझे लगा… क्यों न मै आपके दवाखाने से कोई दवाई खरीद लु…
ताकि आप मेरे बैठने का भार महसूस न करें. आपके पास आकर मैंने कहा वैद्यजी मैं पिछले
4-5 साल से अमेरीका में रहकर चावल का व्यापार कर रहा हूँ. मेरी शादी को 8 वर्ष हो चुके है…
लेकीन मै संतान सुख से वंचित हु. अपने देश में भी इलाज कराया और अमेरीका में भी
इलाज कराया… लेकिन सिर्फ निराशा ही मिली है,
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आपने कहा था… मेरे भाई…! निराश ना हो…! ईश्वर के पास देर है, लेकीन अंधेर नहीं. याद रखो
कि… आस – संतान… धन – इज्जत… सुख – दुःख… जीवन – मृत्यु… सब कुछ उसी के हाथ में है.
यह किसी मेरे जैसे वैद्य या डॉक्टर के हाथ में नहीं होता और नाही किसी दवा में होता है.
जो कुछ होना होता है वह सब ईश्वर के आदेश से होता है. संतान देनी है तो उसी ने देनी है.
मुझे पुरी तरह अच्छे से याद है… आप बातें करते जा रहे थे और साथ-साथ दवाई की पुड़िया भी
बनाते जा रहे थे. सभी दवा आपने दो भागों में बाट कर दो अलग-अलग बड़े से पुडके में डाली थीं
और फिर मुझसे पूछकर आप ने एक पुडके पर मेरा और दूसरे पुडके पर मेरी पत्नी का नाम
लिखकर दवा कीस प्रकार से लेनी है यह बताया था.
मैंने उस समय सिर्फ आपको मेरे यहाँ बैठने से अच्छा लगे इसीलिए वह दवाई ले ली थी क्योंकि मैं
सिर्फ कुछ पैसे आप को देना चाहता था. लेकिन जब दवा लेने के बाद मैंने पैसे पूछे तो आपने कहा
था, बस ठीक है….! मैंने बहुत जोर डाला तो…. आपने कहा था कि आज का खाता बंद हो गया है.
मैंने कहा मुझे आपकी बात कुछ समझ नहीं आ रही है, तभी मेरा ड्रायवर कार ठीक हो गयी,
यह बताने के लिए आया था, उसने भी ये सुन लिया था, वो आपको जानता था, उसने मुझे बताया की…
मालिक खाता बंद होने का मतलब यह है कि आज के घरेलू खर्च के लिए जितने पैसे वैद्यजी ने
ईश्वर से माँगे थे वह ईश्वर ने उन्हें दे दिए है. अधिक पैसे वे नहीं ले सकते.
मैं पहले तो थोडा हैरान हुवा, साथ ही दिल ही दिल में लज्जित भी हुवा कि मै कितनी छोटी सोच का
हुं. और ये वैद्यजी कितने महान है. मैंने जब घर जा कर अपनी पत्नी को दवाई दिखाई और सारी बात
बताई तो उसके मुँह से निकला वो इंसान नहीं कोई ईश्वर है और उनके द्वारा दी हुई दवा ही हमारे
मन की इच्छा पूरी करके हमें संतान सुख देने का कारण बनेंगी. वैद्यजी आपके दवा रूपी आशीर्वाद
से आज मेरे घर में दो संतान रूपी फूल खिले हुए हैं.
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हम दोनों पति-पत्नी हर वक़्त आपके लिए प्रार्थना करते रहते हैं. इतने वर्षो तक व्यापार ने
फ़ुरसत ही नहीं दी कि स्वयं आकर आपसे धन्यवाद के दो शब्द ही कह जाता.
इतने वर्षो बाद आज अपने देश भारत आया हूँ और कार केवल यहीं रोकी है…!
वैद्यजी हमारा पुरा परिवार अमेरीका मे ही रहता है. सिर्फ मेरी एक विधवा बहन अपनी पुत्री के साथ
भारत में रहती है. वैद्यजी मेरी भांजी की शादी इस महीने की 24 तारीख होने वाली है. पता नहीं
क्यों… जब-जब मैं अपनी भांजी के के लिए कोई सामान खरीदता था तो मेरी नजरो के सामने
आपकी वह छोटी-सी बेटी भी आ जाती थी और हर सामान मैं दो -दो ही खरीद लेता था.
मैं आपके विचारों को जानता था कि शायद आप वह सामान न लें… किन्तु मुझे लगता था कि
मेरी अपनी सगी भांजी के साथ जो चेहरा मुझे बार-बार दिख रहा है वह भी मेरी भांजी ही है.
मुझे लगता था कि ईश्वर ने इस भांजी के विवाह में भी मुझे मदत करने की ज़िम्मेदारी दी है.
वैद्यजी तो चकित ही हो गये,उनकी आँखें तो आश्चर्य से खुली की खुली ही रह गईं.
थोड़ी देर शांत रहने के बाद बहुत ही धीरे आवाज़ में बोले… मनोहरलाल जी…
मेरी तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा है, न आपकी कोई बात समझ पा रहा हु…
और नाही उस परमपिता परमेश्वर की माया को समझ पा रहा हु.
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मनोहरलाल जी आप मेरी पत्नी के हाथ से लिखी हुई आज के सामान की ये चिठ्ठी देखिए…
शायद आप कुछ समझ आ जाए. ये बोलकर वैद्यजी ने चिठ्ठी मनोहरलाल जी के हाथ में रख दी.
मनोहरलाल जी ने जैसे ही उस चिठ्ठी की खोला और पढने लगे.. मनोहरलाल जी के साथ साथ
वहाँ उपस्थित सभी यह देखकर आश्चर्यचकीत रह गए कि ” दहेज का सामान” के सामने
लिखा हुआ था,
” यह काम ईश्वर का है… ईश्वर ही जाने.”
वैद्यजी एक दम घबराती हुई आवाज में बोले :- मनोहरलाल जी मेरे इतने वर्षो के जिवन में ऐसा
कभी नहीं हुवा की मेरी पत्नी ने दी हुई रोज के जरूरत के सामान की चिठ्ठी लिखी हो और
ईश्वर ने वो पुरी ना की हो.
आज आपकी सारी बातें सुनने पर मुझे लगने लगा है की, ईश्वर को पता होता है कि…
किस दिन मेरी पत्नी क्या लिखने वाली हैं…! नहीं तो आपसे इतने दिन पहले ही ईश्वर ने
सामान नहीं ख़रीदवाया होता. हे प्रभु… मेरे पालनहार…. भगवान वाह…! तुम महान हो….
तुम दयावान हो…. मैं आश्चर्यचकित हूँ कि आप कैसे अपने रंग दिखाते हो…!
धन्यवाद् प्रभु…..
वैद्यजी के आँखों से अश्रु की धारा बहाने लगी..वहा उपस्थित हर कोई ईश्वर के
माया से चकित थे. वैद्यजी आगे कहने लगे…
प्रभु जैसे आज तक सँभाला है… वैसे ही मेरे अंतिम दिनों को संभल लेना….
मैंने अपने जिवन में… एक ही पाठ पढ़ा है की…
सुबह ईश्वर का आभार करो…!
शाम को पुरा दिन आनंदमयी गुजरनेका का आभार करो…
भोजन करते समय ईश्वर आभार करो…
और सोते समय ईश्वर आभार करो.
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