Hindi Kahani | एक अनमोल ह्रदयस्पर्शी दृष्टांत | हिंदी कहानी 

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Hindi Kahani | एक अनमोल ह्रदयस्पर्शी दृष्टांत | हिंदी कहानी 
Hindi Kahani | एक अनमोल ह्रदयस्पर्शी दृष्टांत | हिंदी कहानी 

जी लो हर लम्हा…
बित जानें से पहलें…
लौट कर यादें आतीं हैं…
वक्त नहीं…!

Hindi Kahani | एक अनमोल ह्रदयस्पर्शी दृष्टांत |
हिंदी कहानी 

पाच साल हुए सुधीर जी को रिटायर्ड हुए…अपना रिटायर्ड जीवन
अपनी पत्नी के साथ बहुत ही आनंद और हँसी खुशी से बीता रहे है…!

सुधीर जी के तीनों पुत्र अलग अलग शहरों में अपने अपने परिवारों के साथ रहते है…!
सुधीर जी तीनो पुत्रो के साथ एक नियम बनाया था की…
हर साल दिवाली में तीनों पुत्र सपरिवार उनके पास आयेंगे ही…
और तीनो पुत्र अपने परिवार के साथ आते भी थे…
पुरे परिवार के साथ दिवाली के सात दिन आनंद और हँसी खुशी में समय
कैसा बीत जाता था…! किसी को कुछ भी पता ही नहीं चलता था…!

फिर पता नहीं कैसे क्या हुआ…! सुधीर जी खुशियों को जैसे किसी नज़र ही
लग गई हो…!

अचानक ही उनकी पत्नी मीरा जी को दिल का दौरा पड़ा…!
एक ही पल में उनकी सारी खुशियाँ बिखरकर रह गईं…!
तीनों पुत्र यह दुःखद समाचार मिलते ही दौड़ते आये…!

माताजी का अंतिम क्रिया कर्म पूरा किया और सभी शाम को इकठ्ठा हो गये…!
बड़ी बहू ने बात उठाई :- पिताजी… आप अब यहाँ अकेले कैसे रह पाओगे…?
आप भी हमारे साथ में चलिये…!

Hindi Kahani | एक अनमोल ह्रदयस्पर्शी दृष्टांत | हिंदी कहानी

नहीं बहू… मुझे अभी यहीं पर रहने दो…! यहाँ मुझे अपनापन सा लगता है…!
बच्चों की गृहस्थी में….. कहते कहते सुधीर जी शांत और चुप से हो गये…!

बड़ा वाला पोता कुछ बोलने की कोशिश कर ही रहा था तो उसे सुधीर जी ने
हाथ के इशारे से उसे मना कर दिया…!

बच्चों…. अब तुम लोगों की माँ, हम सबको छोड़ कर जा चुकी हैं…!
उनकी कुछ चीजें हैं… वो तुम लोग आपस में बाँट लो…!
अब मुझसे उन चीजों को संभालना नही हो पायेगा…!
ये कहते हुए सुधीर जी ने अलमारी से कुछ सामान निकाल कर ले आये…!

मखमल के कपडे में लपेटा हुवा… बहुत ही सुंदर चाँदी का श्रृँगारदान था…!
एक बहुत ही सुंदर सोने के पट्टे वाली पुरानी घडी थी…!
इतनी ख़ूबसूरत चीज़ों को देखकर सभी उनपर लपक से पड़े…!

छोटा पुत्र जोश में बोला :- अरे ये घड़ी तो माँ करुना को देना चाहती थी…!
सुधीर जी धीरे से बोले :- और सब तो मैं तुम लोगों को बराबर से दे ही चुका हूँ…!
इन दो चीजों से तुम्हारी माँ का बहुत लगाव था…
बेहद प्रसन्नता से कभी कभी निकाल कर देखती थीं…
लेकिन अब कैसे उनकी दो चीजों को तुम तीनों में बाँटू…?
सब एक दूसरे का मुँह देखने लगे…!

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तभी मंझला पुत्र बड़े संकोच के साथ बोला :- ये श्रृँगारदान तो…
माँ ललिता को देने की बात किया करती थी…!
परंतु समस्या तो बनी ही हुई थी…! सुधीर जी मन ही मन में सोच रहे थे…!
कि बड़ी बहू को क्या दूँ….?
सुधीर जी के मन के भाव शायद बड़ी बहु ने भी पढ़ लिये थे…!

पिताजी… आप शायद मेरे बारें में सोच रहे हैं…! आप श्रृँगारदान ललिता को
और घडी करुना को दे दीजिये…! माताजी भी तो यही चाहती थीं…!

रागिनी…. फिर तुझे क्या दूँ…! मुझे तो कुछ भी समझ में ही नहीं आ रहा है…?

आपके पास एक और अनमोल चीज़ है…! और वो माताजी सिर्फ मुझे ही
देना चाहती थीं…!

सबके मुँह आश्चर्य से खुले रह गये…!
दोनों बहुऐं तो बहुत ही उत्सुक और परेशान सी हो गईं…!
कौनसा अब नया पिटारा खुलेगा…?

सबकी आतुरता और परेशानी को समझकर बड़ी बहू मुस्कुराते हुए बोली :-
और वो सबसे अनमोल तो आप स्वयं हैं पिताजी…!
पिछली बार माताजी ने मुझसे कह दिया था…!
मेरे बाद पिताजी की देख रेख तेरे जिम्मेदारी…!
बस अब आप उनकी इच्छा का पालन करें और हमारे साथ चलें…!

दिल को छू जाएगी ये Heart Touching Story | Hindi Kahani

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