Hindi Story | एक बहु ऐसी भी | हिंदी कहानी | Sunder Vichar
माँ जी ये पाच हजार रुपये, आप अपने पास रखिये.
यह बोलते हुए बहु ने सास को पाच हजार रूपये दिए
और बहु अपने ऑफिस के लिए निकल गयी.
सास का एकदम से गला भर आया, भरे गले से बोली…
बेटी, मुझे इतने पैसे का क्या काम है…!
माँ जी एक महिना हुवा है हमें इस नए घर में आए…
मै रोज देख रही हूँ… आपको कितनी चीजो के लिए पैसे लगते है…
आप सब्जी लेती हो, फल लेती हो… कामवाली भी कभी
आपको पैसे मांगती है, आप रोज सामनेवाले गार्डन में घुमने
जाती हो… आपका कुछ खाने का मन हुवा,
या कुछ खरीदने का मन हुवा तो…
आप ये पाच हजार रुपये अपने पास रखिये….
सास चहरे पे मुस्कुराहट लाते हुए बोली, पेंशन के पैसे रहते है मेरे पास…!
इस पर बहु बोली… माँ जी आप गार्डन में जाती है.. वहा आप फ्रेंड्स बनाये…
कभी मन हुवा तो पिक्चर देखने जाये… पार्टी दो… पार्टी करो…
अपनी जिंदगी खुलकर जियो माँ जी…!
इन्होने मुझे बताया की आपने बहुत मुश्किलें उठाते हुयें इस घर को संभाला हैं.
बड़े भैया अपने घर में खुश है… दीदी अपने ससुराल में खुश है, हम भी खुश है.
अब आप किसी की या कोई भी चिंता किये बगैर खुश रहे…
सिर्फ अपने लिए जियो… जो आपके मन में आये वो करो….
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मै जानती हूँ, आपने अपनी कितनी मुश्किले उठाई है, इस परिवार को
सँभालने के लिए… इस घर को बनाने में भी आपकी कई इच्छाओं का
गला घोटा गया. बस… जो हुवा सो हुवा…
अब आप सिर्फ और सिर्फ ख़ुद के लिए जियो…!
एक बहु ऐसी भी | हिंदी कहानी
बेटी इतनी छोटी उम्र में इतनी बड़ी बड़ी बातें कहाँ से सीखी तुने…?
माँ जी, जब मै 12 साल थी… तब एक दिन मेरी दादी बुवा के यहाँ
जा रही थी…! मेरी माँ ने दादी को पाच सौ रुपये उनके हाथ पर रखें .
और बोली वहा बच्चों को बाहर ले जाना… नानी की तरफ़ से कुछ
खानें-पिने पे खर्च करना, खिलौने लेकर देना.
दादी मम्मी के गले में लगकर रोने लग गई, और मैंने इतने पैसे आज तक
कभी भी दिल खोलकर ख़र्च किए ही नहीं… ऐसा बोलने लगी.
तब से मम्मी और दादी का व्यावहार आपस में अच्छी सहेलियों जैसा था…!
माँ जी मुझे ये भी पता लगा है की इस परिवार को सँभालने के लिए आपको
अपनी जॉब भी छोड़नी पड़ी, कितना बुरा लगा होगा आपको .
कितनी इच्छाओं महत्वाकांक्षाओं का दम घोटना पड़ा होगा…!
इसके बाद हर छोटी बड़ी बात के लिए आपको पति के सामने
हाथ फैलाना पड़ा होगा. तब पति भी उपकार कियें जैसे पैसे दिये करते थे…
माँ जी, आज से आप आपकी पेंशन को खर्च ना करे, पेंशन के पैसे
अपने पास ही रहने दीजिएगा. अगर मुझे कभी आवश्यकता लगी तो
मैं आपसे ही मांगूंगी…
बस्स बेटी… सब कुछ आज ही बोलेगी क्या… तुझे ऑफ़िस में देर हो रही है
जल्दी जा…
मुझे बोलने दो माँ… यह भी मै अपनी ख़ुशी के लिए ही कर रही हू,
मेरी माँ हमेशा कहती है कि १६-१८ घंटे घर में काम करने वाली महिला को
कोई समझता ही नहीं है. लेकिन तुम अपने सास की मेहनत को ध्यान में रखना…
प्यार बोओगी तो प्यार ही उगेगा…!
सास ने डबडबाई आँख से बहु को गले लगाया और आँखों से ओझल न हो
तब तक दरवाज़े में खड़ी रही.
बहू के आने पर मैं इस घर की चारदीवारी में बंध के रह जाऊँगी
ऐसे सोचा था. पर बेटी तूने तो दरवाज़ा खोलकर मुझे बाहर का
आसमान दिखा दिया…!
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किसी की बेटी हमारे घर की बहू है…
और हमारी बेटी किसी घर की बहू है.
हमारी बेटी के पास
वही लौटकर कर जाने वाला है
जो व्यवहार हम अपनी बहू के साथ करेंगे.
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