चंदन का बगीचा | प्रेरणादायक कहानी |
Motivational Story Hindi
घने जंगल में एक भटके हुए राजा को बहुत समय से प्यास लगी थी, लेकिन…
दूर दूर तक ना पानी दिख रहा था और ना ही कोई इंसान. तभी राजा की नजर
एक लकड़ी काटते लड़के पर गई… राजा दौड़ता हुवा गया और पानी की मांग की.
उस लकडहारे ने राजा को अपने पास का पानी पिलाया तो राजा काफी प्रसन्न हुवा
और उसके जान में जान आई.
थोड़ी देर वही विश्राम करने के बाद, जाते हुए राजाने लकडहारे से कहा की…
कभी भी राजदरबार में आना… मै तुम्हे पुरस्कार दूंगा.
लकडहारा बोला ठीक है महाराज…
कुछ समय बाद वह लकडहारा घुमते – फिरते राजदरबार में पहुँचने के बाद
राजा को उस घटना की याद दिलाई, क्योकि काफी समय बीत गया था.
राजा से बोला, महाराज मै वही लकडहारा हूँ जिसने आपको उस दिन घने जंगल में
पानी पिलाया था…
राजा ने प्रसन्नतापूर्वक उससे बात की और सोचने लगा की इस निर्धन को
क्या दिया जाये…? जिससे ये आजीवन सुखी रहे… थोड़ी देर सोचने के बाद
राजा ने उसे अपना एक चंदन का बाग़ दे दिया.. .
लकडहारे के खुशी का ठिकाना ना रहा… वो मन ही मन सोचने लगा…
इस बाग के पेड़ों के कोयले तो बहुत सारे होंगे, मेरा पूरा जीवन आराम से
कट जायेगा.
अब हर दिन लकड़हारा बगीचे के चन्दन काट – काटकर कोयले बनाने लगा
और उन्हें बेचकर अपना पेट पालने लगा. कुछ समय में ही चंदन का
सुंदर बगीचा उजाड़ दिया गया.
अब बगीचे में जगह- जगह पर कोयले के ढेर लगे थे…!
अब उस बगीचे में थोड़े ही पेड़ बचे थे जो उस लकडहारे को
छाया देते थे…!
उधर एक दिन राजा के मन में विचार आया की चलो… आज जरा उस
लकड़हारे का हाल चाल देख आएँ. इसी बहाने चंदन का बगीचा भी
घूम के हो जाएगा.
यह सोचकर राजा चंदन के बगीचे की तरफ़ निकल गए… राजा को दूर से ही
बगीचे से धुआँ उठते दिखा… नजदीक आने पर राजाको समझ आ गया की…
चंदन जल रहा है और लकड़हारा पास ही खड़ा है.
चंदन का बगीचा | प्रेरणादायक कहानी |
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लकडहारे ने राजा को आते देखकर लकड़हारा उनके स्वागत के लिए
आगे आया. राजा ने आते ही कहा – भाई…! यह आपने क्या किया…?
लकड़हारा बोला… आपकी कृपा से इतना समय आराम से कट गया… आपने यह
बगीचा देकर मेरा बड़ा भला किया आपने… कोयला बना-बनाकर बेचता रहा हूँ.
अब तो कुछ ही वृक्ष रह गये हैं… यदि कोई और बगीचा मिल जाए तो बाकी जीवन भी
सुखी हो जाए.
राजा मुस्कुराया और कहा… अच्छा, मैं यहाँ खड़ा होता हूँ… तुम कोयला नहीं…
बल्कि इस चंदन की लकड़ी को ले जाकर बाजार में बेच आओ.
लकड़हारे ने लगभग ५ फिट की एक लकड़ी उठाई और बाजार में
बेचने के लिए निकल गया…
लोग चंदन देखकर दौड़े और अंततः उसे चार सौ रुपये मिल गये…
जो की कोयले से कई गुना ज्यादा थे.
लकड़हारा मूल्य लेकर रोता हुआ राजा के पास आय और जोर-जोर से रोता हुआ
अपनी भाग्य हीनता स्वीकार करने लगा.
इस कहानी में चंदन का बगीचा मतलब हमारा शरीर और हमारा एक – एक श्वास
चंदन के पेड़ हैं… लेकिन अज्ञानता वश हम इन चंदन को कोयले में बदल रहे हैं…!
लोगों के साथ बैर… द्वेष… क्रोध… लालच… ईर्ष्या… मनमुटाव… को लेकर खिंच-तान आदि
की अग्नि में हम इस जीवन रूपी चंदन को जला रहे हैं.
जब अंत में श्वास रूपी चंदन के पेड़ कम रह जायेंगे तब हमें अहसास होगा कि
व्यर्थ ही अनमोल चंदन को इन तुच्छ कारणों से हम दो कौड़ी के कोयले में
बदल रहे थे…!
लेकिन अभी भी देर नहीं हुई है… हमारे पास जो भी चंदन के पेड़ बाकी है उन्ही से
नए पेड़ बन सकते हैं.
आपसी प्रेम… सहायता… सौहार्द… शांति… भाईचारा… और विश्वास… के द्वारा
अभी भी जीवन सँवारा जा सकता है.
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