Pausha Putrada Ekadashi Vrat Katha | पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा

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Pausha Putrada Ekadashi Vrat Katha | पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा
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पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा
Pausha Putrada Ekadashi Vrat Katha

विभिन्न देवी देवताओं को समर्पित व्रत, पूजा, का नियम हिंदू संस्कृति में है.
और यह पूरे वर्ष चलता रहता है.

इस लेख की मुख्य बातें
  • पौष पुत्रदा एकादशी पौष माह के शुक्ल पक्ष में पड़ती है.
  • यह एकादशी व्रत महिलाओं के बीच संतान प्राप्ति के लिए लोकप्रिय है.
  • शास्त्रों में राजा सुकेतूमान और रानी शैव्या की रोचक कथा मिलती है

हर महीने में अलग अलग तिथि का अलग अलग महत्व है. और उसे अलग अलग
देवी देवताओं के साथ जोड़कर देखा जाता है. जिससे आपकी जिस देवी देवता में
श्रद्धा हो उसके अनुसार व्रत, पूजा, नियम का पालन किया जाता है.

महीने में दो बार कुछ महत्वपूर्ण व्रत आते है. जैसे एकादशी तिथि, [ ग्यारहवें दिन ]
और त्रयोदशी तिथि, [तेरहवें दिन ]

विष्णु भगवान् को समर्पित एकादशी व्रत शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष के ग्यारहवें दिन
और महादेव को समर्पित व्रत हर कुष्ण पक्ष या शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि
[ तेरहवें दिन ] को मनाया जाता है.

सम्पूर्ण साप्ताहिक, मासिक एवं वार्षिक व्रतों, नियमों में एकादशी व्रत को सबसे
अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है.

एक वर्ष, बारह महिनों में कुल 24 बार एकादशी व्रत आते है. और इनको
अलग अलग नामों से जाना जाता है. और सभी का एक अलग अलग महत्व होता है.

आज पौष पुत्रदा एकादशी के व्रत, नियम की जानकारी इस लेख में पढेंगे.
पौष माह में पड़ने वाली शुक्ल पक्ष की एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कहा जाता है.

Pausha Putrada Ekadashi Vrat Katha | पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा

पुत्रदा एकादशी साल में दो बार आती है… एक पौष के महीने में और दूसरी श्रावण माह में.
पौष पुत्रदा एकादशी दिसंबर या जनवरी महीने में पड़ती है. जबकि श्रावण पुत्रदा एकादशी
जुलाई या अगस्त के महीने में आती है.

पौष मास की पुत्रदा एकादशी का उत्तर भारत में ज्यादा महत्व मानकर मनाते है…
जबकि श्रावण मास पुत्रदा एकादशी का अन्य क्षेत्रों में अधिक महत्व मानते है.

हिंदू वर्ष में पौष माह आमतौर पर ग्रेगोरि केलेंडर के अनुसार का पहिला महिना
जनवरी में सुरु होता है. किसी वर्ष यह एकादशी दिसंबर या जनवरी महीने में आती है.

यह एकादशी संतान प्राप्ति के लिए बेहद अहम मानते है.

पौष पुत्रदा एकादशी व्रत के साथ राजा सुकेतूमान की एक रोचक कथा जुड़ी हुई है.

पौष पुत्रदा एकादशी व्रत, कथा, महत्व (Pausha Putrada Ekadashi Katha )

भगवान श्री कृष्ण से धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे प्रभु…! पौष कृष्ण एकादशी
अर्थात सफला एकादशी का माहात्म्य बताकर आपने मुझ पर बड़ी कृपा की है.
अब आप कृपा करके मुझे पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के विषय में भी बतलाइये.
इस एकादशी का क्या नाम है और इस एकादशी व्रत का क्या विधान है….? क्या विधि है….?
यह एकादशी व्रत करने से किस फल की प्राप्ति होती है….? और व्रत में किस देवता का
पूजन किया जाता है…? प्रभु कृपया यह सब विधानपूर्वक बताईये….

भगवान श्रीकृष्ण बोले : पौष माह के शुक्ल पक्ष मे आने वाली इस एकादशी को
पौष पुत्रदा एकादशी कहा जाता है. इस एकादशी में भी श्री विष्णु भगवान की पूजा की जाती है.
इस व्रत को विधिपूर्वक करना चाहिए. इस चर- अचर संसार में पुत्रदा एकादशी के व्रत के समान
दूसरा कोई व्रत नहीं है. इसके पुण्य से मानव तपस्वी, विद्वान और लक्ष्मीवान होता है.
महाराज युधिष्ठिर आपको मैं इसकी एक कथा सुनाता हूँ. तुम ध्यानपूर्वक सुनो.

पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा
Pausha Putrada Ekadashi Vrat Katha

सुकेतुमान नाम का एक राजा भद्रावती नामक नगरी में राज्य करता था.
उस राजा को कोई पुत्र नहीं था. राजा की पत्नी का नाम शैव्या था. रानी निपुत्री
होने के कारण हमेशा चिंतित रहा करती थी.

राजा के पितर भी रो – रोकर पिंड लिया करते थे और सोचा करते थे कि इसके बाद
हमको कौन पिंड देगा.

राजा के पास धन, हाथी, घोड़े, हुशार मंत्री थे लेकिन राजा आनंदित नहीं रहता था.
उसे समाधान नहीं था. उसके मन में हमेशा निपुत्रिक होने का दुःख ही रहता था.
उसके जीवन में संतोष नहीं था.

राजा के मन में हमेशा यही विचार आते रहता की मेरे मरने के बाद मुझको पिंडदान
कौन करेगा. पुत्र के बीना मैं पितरों और देवताओं का ऋण कैसे चुका सकूँगा.
जिस घर में पुत्र न हो उस घर में हमेशा अंधकार ही रहता है. इसलिए पुत्र
प्राप्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए.

पुत्र का मुख जिस मनुष्य ने देखा है… उसका जीवन धन्य हुवा है. उसके दोनों लोक
सुधर जाते है. पूर्व जन्म के कर्म से ही इस जन्म में पुत्र, धन वैभव आदि प्राप्त होते हैं.
इसी प्रकार जिस मनुष्य रात-दिन चिंता में डूबा रहता था.

एक बार तो राजा ने अपने शरीर को त्याग देने का निश्चय किया था. लेकिन आत्मघात को
महान पाप समझकर उसने ऐसा नहीं किया. एक दिन राजा ऐसा ही विचार करता हुआ
अपने घोड़े पर चढ़कर जंगल की और चल दिया तथा पक्षियों और वृक्षों को देखने लगा.
उसने देखा कि जंगल में प्राणी, पक्षी सभी घूम कर रहे हैं. हाथी अपने बच्चों और हथिनियों
के बीच घूम रहा है.

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पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा
Pausha Putrada Ekadashi Vrat Katha

इस जंगल के आनंदमय दृश्यों को देखकर राजा सोच विचार करने लगा. मन ही मन दुखी हुवा
और आकाश की और देखकर कहने लगा…. हे भगवंत मैंने लोककल्यान के लिए यज्ञ किये.
मेरे राज्य में प्रजा, ब्राह्मण आदि सभी सुखी है… फिर मुझे दुःख क्यों मिल रहा है……?
ये कहते हुए राजा वही बैठ गया.

थोड़ी देर बाद उसे प्यास लगी और वह पानी के लिए जंगल में इधर उधर भटकने लगा.
कुछ दूर जाने पर राजा को पानी से लबालब भरा हुवा सरोवर दिखा. सरोवर के चारो तरफ
मुनियों के आश्रम बने थे. राजा सरोवर के पास गया. पानी पीकर सरोवर के दृश्यों को
निहारने लगा. उस सरोवर में हंस, मगरमच्छ आदि प्रेम से विहार कर रहे थे.
राजा को उस वातावरण में अलग ही शांति का अनुभव हो रहा था.

राजा थोड़ी दुरी में बने आश्रम की और चार दिया और वह बैठे मुनियों को दंडवत प्रणाम करके
उन्ही के पास बैठ गया.

राजा के विनम्र स्वभाव से प्रसन्न होकर मुनियों ने कहा :- राजन तुम्हारी क्या इच्छा है… बताएं…
राजा ने पूछा : मुनिवर आप कौन हैं…. और किसलिए यहाँ आए हैं…. कृपा करके बताइए…

मुनि कहने लगे कि हे राजन….! आज संतान देने वाली पुत्रदा एकादशी है. हम लोग विश्वदेव हैं
और इस सरोवर में स्नान करने के लिए आए हैं.

यह सुनकर राजा कहने लगा की… मुनिवर मेरी भी कोई संतान नहीं है. अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं
तो एक पुत्र का वरदान दीजिए.

पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा
Pausha Putrada Ekadashi Vrat Katha

मुनि बोले :- हे राजन….! आज पुत्रदा एकादशी है. आप पुत्रदा एकादशी ही इसका व्रत करें.
भगवान की कृपा से अवश्य ही आपके घर में पुत्र होगा.

मुनि के वचनों को सुनकर राजा ने उसी दिन एकादशी का ‍व्रत किया और द्वादशी को
उसका पारण किया. इसके पश्चात मुनियों को प्रणाम करके महल में वापस आ गया.
कुछ समय बीतने के बाद रानी ने गर्भ धारण किया और नौ महीने के पश्चात उनको
एक पुत्र हुआ. वह राजकुमार अत्यंत शूरवीर, यशस्वी और प्रजापालक हुआ.

श्रीकृष्ण बोले: हे राजन…! पुत्र की प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत करना चाहिए.
जो मनुष्य इस माहात्म्य को पढ़ता या सुनता है उसे अंत में स्वर्ग की प्राप्ति होती है.

पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा
Pausha Putrada Ekadashi Vrat Katha

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विधि 

  • अगर आप पौष पुत्रदा एकादशी व्रत रखने जा रहे हैं तो दशमी के दिन
    सूर्यास्त से पहले भोजन कर लें.
  • व्रत के दौरान यह ध्यान रखें की…
    भोजन में प्याज लहसुन वगैरह का सेवन नहीं करें.
  • एकादशी वाले दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर
    और व्रत का संकल्प लें.
  • इस दौरान भगवान को पुष्प, अक्षत, रोली, धूप, दीप, फूल माला
    और नैवेद्य अर्पित करें और पुत्रदा एकादशी के व्रत की कथा पढ़ें.
  • संतान इच्छा के लिए इस दिन भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप की
    पूजा की जाती है.
  • इसके पश्चात संतान गोपाल मंत्र का जाप करें.
  • इसके बाद विष्णु सहस्रनाम स्तोत्रम का पाठ करें.
  • पीले पुष्प, तुलसी, पीले फल, एवं पंचामृत आदि अर्पित करें.
  • शाम को विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा और आरती के बाद
    जरूरतमंद अथवा गरीबों को यथासंभव दान दीजिए.
    इसके पश्चात पति-पत्नी को साथ में प्रसाद ग्रहण करें.

हरी ॐ श्री विष्णु  नारायण नारायण

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