एक सुंदर कविता | रामायण |
भगवान् श्री राम जी से चाँद को शिकायत
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Ramayana | भगवान श्री राम जी से चाँद को शिकायत |
सुंदर कविता
राम राम जी
आज मुझे एक बहुत ही सुन्दर कविता पढ़ने को मिली….
पढ़कर मन को अलग ही आनंद की अनुभूति हुई…
आशा है… आप भी इसका आनन्द लेंगे…!
भगवान् श्री राम जी से चाँद को यह शिकायत है की दीपावली का त्यौहार
अमावस की रात में मनाया जाता है…
और अमावस की रात में चाँद तो निकलता ही नहीं है….
इससे चाँद कभी भी दीपावली का त्यौहार नहीं मना सकता…!
यह एक सुंदर कल्पना है की, चाँद किस प्रकार स्वयं को…
श्री राम जी के हर कार्य से जोड़ लेता है और फिर श्री राम जी से
शिकायत करता है और श्री राम भी उस की बात से सहमत हो कर
चाँद को वरदान दे बैठते हैं.
जब धीरज चाँद का छूट गया
वह श्री राम जी से रूठ गया.
बोला रात को आलोकित हम ही ने करा है…
स्वयं महादेव ने हमें अपने सिर पे धरा है.
आपने भी तो उपयोग हमारा किया है…
हमारी ही चांदनी में सीता को निहारा है.
सीता के रूप को हम ही ने सँभारा है…
चाँद के तुल्य उनका मुखड़ा निखारा है.
जिस वक़्त सीता याद में…
आप चुपके – चुपके रोते थे.
उस समय तुम्हारे साथ में बस…!
हम ही तो जागते रहते थे.
संजीवनी लाऊंगा प्रभ…
लखन को बचाऊंगा प्रभु
हनुमान ने तुम्हे कर तो दिया आश्वश्त
मगर अपनी चांदनी बिखेर कर…
मैंने ही मार्ग किया था प्रशस्त.
तुमने हनुमान को गले से लगाया…
मगर मेरा कहीं नाम भी ना आया.
रावण की मृत्यु से मैं भी बहुत प्रसन्न था…
तुम्हारी विजय से मेरा मन भी प्रफुल्लित था…
मैंने भी आकाश से पृथ्वी पर झाँका था…
आकाश के सितारों को करीने से टांका.
सभी ने तुम्हारा विजयोत्सव मनाया…
पुरे नगर को दुल्हन सा सजाया.
इस अवसर पर आपने सभी को बुलाया…
बताओ जरा…! मुझे फिर आपने क्यों भुलाया…
क्यों अपना विजयोत्सव आपने
अमावस्या की रात को ही मनाया…?
अगर आप अपना उत्सव किसी और दिन मानते…
आधे अधूरे ही सही लेकिन शामिल तो हम भी हो जाते.
मुझे सताते हैं , चिड़ाते हैं लोग…
आज भी दीपावली अमावस में ही मनाते हैं लोग.
तो प्रभु ने कहा, क्यों व्यर्थ में घबराता है…?
जो कुछ खोता है वही तो पाता है…!
जा तुझे अब लोग न सतायेंगे…
आज से सब तेरा ही मान बढाएंगे…
जो मुझे सिर्फ श्री राम कहते थे वही…
आज से श्री रामचंद्र कह कर बुलायेंगे.
रामायण
१) इस संसार में जो भी जन्म लेता है उसे एक ना एक दिन
इस संसार को अवश्य त्यागना ही पड़ता है. – शाश्वत सत्य.
२) लोभ मनुष्य को अंधा कर देता है…! जिसके कारण पाप और पुण्य में को भी अंतर दिखाई
नहीं देता. लोभ ही पाप की मुख्य जड़ है.
नहीं देता. लोभ ही पाप की मुख्य जड़ है.
३) माँ की आत्मा तो सदैव अपने पुत्र की तरफ़ ध्यान करेगी. – कौशल्या माता.
४) हम सब तो सिर्फ भाग्य की कठपुतलियाँ हैं. – महारानी कौशल्या.
५) सूर्य को कोई साक्षी की आवश्यकता नहीं होती, उसका प्रकाश ही उसका प्रमाण है। – गुरु वशिष्ठ.
६) जो वस्तु अपनी नहीं है… उसे लेना पाप है. – भरतजी.
७) माँ का अधिकार माँ से कोई छीन नहीं सकता. वो अपने पुत्र को दंड भी दे सकती है
और प्रेम का हाथ भी फेर सकती है। – माँ कौशल्या, भरतजी से कैकई के लिए.
८) बैर और प्रेम छिपाय से नहीं छिपता है – राजा निषादराज.
९) स्वामी कंदमूल खाये और सेवक राजभोग खाये, ऐसे सेवक को धिक्कार है – भरतजी.
१०) विपत्ति के समय ही किसी जाति, वंश और समुदाय की परीक्षा होती है. – ऋषि भारद्वाज.
११) राजमद में चूर होकर कोई भी अपना विवेक आपा और खो देता है.
१२) कोई भी महत्त्वपूर्ण कार्य बिना सोचे समझे कभी नहीं करना चाहिए अन्यथा अनर्थ हो सकता है.
१३) कर्म ही मनुष्य के हाथ में है, उसी से वो अपना भाग्य बनाता है. – गुरु वशिष्ठ.
१४) भक्त के हृदय से अगर सच्चे भाव निकलें तो, भगवान को भी अपने नियम बदलने पड़ते हैं.
१५) धर्म कोई व्यापार नहीं होता… जो वस्तुओं से अदल-बदल कर लिया जाए.- भरतजी से रामजी.
सुंदर