Shattila Ekadashi | षटतिला एकादशी पर
भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए
जरूर पढ़ें ये व्रत कथा, जानें पूजा विधि
माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को षटतिला एकादशी व्रत रखा जाता है.
यह व्रत हर साल माघ माह में कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि के दिन रखा जाता है.
षटतिला एकादशी व्रत जगत के पालनहार श्री हरी विष्णु जी का आशीर्वाद
पाने के लिए किया जाता है. पौराणिक शास्त्रों के अनुसार, माघ मास के कृष्ण पक्ष की
एकादशी ‘षटतिला’ या ‘पापहारिणी’ के नाम से जानी जाते है. जो समस्त पापों का नाश
करती है. जितना पुण्य कन्यादान, हजारों वर्षों की तपस्या और स्वर्ण दान से मिलता है,
उससे अधिक फल षटतिला एकादशी करने से मिलता है. इस व्रत को करने से घर में
सुख-शांति का वास होता है और मनुष्य को इस लोक में सभी सुखों की प्राप्ति होकर
अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है.
षटतिला एकादशी [ Shattila Ekadashi]
व्रत कथा और व्रत विधि
यह भी मान्यता है कि षटतिला एकादशी तिथि को तिल दान करने से पुण्य प्राप्त होते हैं.
इसके साथ ही यह भी मान्यता है कि इस दिन श्री हरी विष्णु भगवान की विधिवत पूजा
करने और षटतिला एकादशी व्रत कथा (Shattila Ekadashi Vrat Katha) पढने से
सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
पौराणिक कथा के अनुसार…. श्री हरी विष्णु भगवान से नारद जी ने षटतिला एकादशी
की कथा और उसके महत्व के बारे में बताने का निवेदन किया था. तब भगवान विष्णु जी
ने उनको षटतिला एकादशी कथा (Shattila Ekadashi Vrat Katha) सुनाई थी.
जानिये षटतिला एकादशी व्रत कैसे किया जाता है
और यहां षटतिला एकादशी व्रत कथा भी पढें.
षटतिला एकादशी की व्रत कथा
काफी समय पहले की बात है. एक नगर में एक ब्राह्मणी निवास करती थी. वह भगवान
श्री हरि विष्णु की भक्त थी. वह भगवान विष्णु के सभी व्रतों को नियम से करती थी.
लेकिन कभी भी दान नहीं
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एक बार उस ब्राम्हणी ने इसी प्रकार एक महीने तक व्रत और उपवास रखा.
इसकी वजह से उसका शरीर कमजोर हो गया… लेकिन शरीर शुद्ध हो गया.
अपने भक्त को देखकर भगवान ने सोचा कि शरीर शुद्धि से इस भक्त को
बैकुंठ तो प्राप्त हो जाएगा… लेकिन उसका मन तृप्त नहीं होगा. जिससे उसको
मानसिक शांति नहीं मिलेगी.
उसका व्रत करते समय दान नहीं करने का गुण से उसे विष्णुलोक में तृप्ति नहीं
मिलेगी इस वजह से श्री हरी भगवान स्वयं उससे दान लेने के लिए उसके घर पर
गए. वे उस ब्राह्मणी के घर भिक्षा लेने गए, तो उसने भगवान विष्णु को
दान में एक मिट्टा का ढेला दे दिया. श्री हरि वहां से चले आए.
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समय बितता गया और कुछ समय बाद ब्राह्मणी का निधन हो गया और
वह विष्णुलोक पहुंच गई. उसे वहां पर रहने के लिए एक कुटिया मिली…
जिसमें एक आम के पेड़ के सिवाय कुछ भी नहीं था.
उसने श्री हरी विष्णु भगवान से प्रश्न किया की…. प्रभु इतना व्रत करने का
क्या लाभ….? उसे इस विष्णुलोक में तो खाली कुटिया और एक आम का पेड़ मिला.
तब श्रीहरि विष्णु भगवान ने कहा कि तुमने मनुष्य जीवन में कभी भी अन्न या धन
का दान नहीं दिया. यह उसी का परिणाम है. यह सुनकर उसे पश्चाताप होने लगा.
उसने प्रभु से इसका उपाय पूछा.
Shattila Ekadashi | षटतिला एकादशी |व्रत कथा, जानें पूजा विधि
तब भगवान विष्णु ने कहा कि जब देव कन्याएं तुमसे मिलने आएं….
तो तुम उनसे षटतिला एकादशी व्रत करने की विधि पूछना. जब तक वे इसके
बारे में बता न दें….तब तक तुम कुटिया का द्वार मत खोलना.
पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा – Pausha Putrada Ekadashi Vrat Katha
भगवान विष्णु के बताए अनुसार ही उस ब्राह्मणी ने किया. देव कन्याओं से विधि
जानने के बाद उसने भी षटतिला एकादशी व्रत किया. उस व्रत के प्रभाव से उसकी
कुटिया सभी आवश्यक वस्तुओं, धन-धान्य आदि से भर गई. वह भी रुपवती हो गई.
भगवान विष्णु ने नारद जी को षटतिला एकादशी व्रत की महिमा इस प्रकार सुनाई.
षटतिला एकादशी के दिन तिल का दान करने से सौभाग्य बढ़ता है और दरिद्रता
दूर होती है.
षटतिला एकादशी व्रत विधि (Shattila Ekadashi Vrat Vidhi)
षटतिला एकादशी के दिन स्नान करें. साफ वस्त्र धारण करें.
श्री हरि विष्णु का स्मरण करें और व्रत का संकल्प लें. घर के मंदिर में
श्री हरि विष्णु की मूर्ति या फोटो के सामने दीपक जलाएं.
भगवान विष्णु की प्रतिमा या फोटो को वस्त्र पहनाएं. प्रसाद व फलों का भोग लगाएं.
षटतिला एकादशी के दिन काले तिल के दान का बड़ा महत्त्व है. भगवान विष्णु को
पंचामृत में तिल मिलाकर स्नान कराएं. इस व्रत को रखने से आरोग्यता प्राप्त होती है.
अन्न, तिल आदि दान करने से धन-धान्य में वृद्धि होती है.
भगवान को धूप-दीप दिखाकर विधिवत् पूजा-अर्चना करें, आरती उतारें.
पूरे दिन निराहार रहें. शाम के समय कथा सुनने के बाद फलाहार करें.
रात में जागरण करें.