Sunder Vichar | हरी इच्छा – हरी कृपा | Suvichar Status Hindi

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Sunder Vichar | हरी इच्छा - हरी कृपा | Suvichar Status Hindi
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Sunder Vichar | हरी इच्छा – हरी कृपा | Suvichar Status Hindi

इस बनावटी दुनिया में कुछ
सीधा सच्चा रहने दो…
उम्र जितनी हो जाए चाहे…
दिल को तो बच्चा रहने दो…
रिवाजो की भट्टी में पकी तो
जल्द चटकेगी जिंदगी…
मन की मिट्टी को थोडा सा तो
गीला – कच्चा रहने दो…!

सच्चे भक्त के जीवन में दो ही शब्द हैं…
और सारा जीवन उन्हे इन दो शब्दों के
बीच में बिताना है…
एक है… हरी – कृपा और
दूसरा है… हरी- इच्छा.

यदि अपने मन के अनुकूल है तो
समझ लीजिए हरी – कृपा
और जब मन के अनुकूल न हो तो
हरी- इच्छा.

Sunder Vichar | हरी इच्छा – हरी कृपा | Suvichar Status Hindi

कितनी बढ़िया बात है…
हरी-कृपा माने…
हमारी जो इच्छा है
उसे उन्होने पूरा कर दिया.
और हरी- इच्छा मतलब…
उनकी जो इच्छा हुई वह
उन्होने किया.

तो चाहे हमारी इच्छा वे पूरी करें या
चाहे अपनी इच्छा हमसे पूरी करावें…
चाहे आत्मा की इच्छा पूरी हो…
चाहे परमात्मा की इच्छा पूरी हो…

मेरे जीवन में कोई द्धन्द
नही होना चाहिए…
क्योंकि मेरे परमात्मा तो
सदैव ही मेरा भला ही चाहते हें.

प्रभु…! सुख देना तो बस…
इतना देना की…
अहंकार न आ जाए…
और दुःख देना तो बस…
इतना देना की
आस्था ना चली जाए…

Hare Krishna – Jai Shree Krishna – श्रीकृष्ण को प्रेम से जगाओ…

श्री कृष्ण को प्रेम से जगाओ… आपका भाग्य जागेगा.

श्री कृष्ण को नित्य स्नान कराओ… तो आपके सब पाप धुल जाएँगे.

श्री कृष्ण को चरणामृत प्रेम से पान कराओ… आपकी मनोवृत्ति बदल जाएगी.

श्री कृष्ण को तिलक लगाओ… आपको सर्वत्र सम्मान मिलेगा.

श्री कृष्ण के चरणों का तिलक स्वयं भी लगाओ… आपका मन शांत होगा.

श्री कृष्ण को भोग लगाओ… आपको संसार के सभी भोग मिलेंगे.

श्री कृष्ण का प्रसाद स्वयं भी पाओ… आप निष्पाप हो जाओगे.

Sunder Vichar | हरी इच्छा – हरी कृपा | Suvichar Status Hindi

श्री कृष्ण के सम्मुख दीप जलाओ… आपका जीवन प्रकाशमान होगा.

श्री कृष्ण को धूप लगाओ… आपके दुख के बादल स्वत: छट जाएँगे.

श्री कृष्ण को पुष्प अर्पित करो… आपके जीवन की बगिया महकेगी…

श्री कृष्ण का भजन-पाठ करो… आपका यश बढ़ेगा.

श्री कृष्ण को नित्य प्रणाम करो… संसार आपके आगे झुकेगा.

श्री कृष्ण के आगे घंटनाद करो… आपकी दुष्प्रवृत्तियाँ दूर होंगी.

श्री कृष्ण के आगे शंखनाद करो… आपकी काया निरोगी रहेगी.

श्री कृष्ण को प्रेम से शयन कराओ… आपको चैन की नींद आएगी.

श्री कृष्ण के दर्शन करने नित्य मंदिर जाओ… आपके दुख में प्रभु दौड़े चले आएँगे.

श्री कृष्ण को अर्पण कर ही वस्तु का उपभोग करो… आपको परमानंद मिलेगा.

श्री कृष्ण को लाड़ – प्यार से खिलाओ… संसार आप पर रिझेगा.

Sunder Vichar | हरी इच्छा – हरी कृपा | Suvichar Status Hindi

श्री कृष्ण से ही माँगो… जो चाहोगे वो आपको मिलेगा.

श्री कृष्ण का प्रसाद मानकर सुख – दुख भोगो… आप सदा सुखी रहेंगे.

श्री कृष्ण का ध्यान करो… प्रभु अंत समय तक आपका ध्यान रखेंगे.

जय श्री कृष्ण

हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे

हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे

Sunder Vichar | हरी इच्छा - हरी कृपा | Suvichar Status Hindi
Hare-Krishna-Jai-Shree-Krishna-श्रीकृष्ण-को-प्रेम-से-जगाओ
हे प्रभु… 
तुम्हें पिता कहूँ… आराध्य कहूँ… या गुरु…
पालने वाले भी तुम… संभालनेवाले भी तुम…
और गुरु बनकर सिखानेवाले भी तुम…..
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गीता के मूलमंत्र – गीता सार- geeta-saar-geeta-ke-mulmantra-jai-shree-krishna

गीता के मूलमंत्र – गीता सार

अध्याय 1

सारे तनाव और उदासी का कारण मोह ही होता है.

अध्याय 2

अपने शरीर को मै न समझो… बल्कि अपनी आत्मा को मैं समझो.

क्योंकि आत्मा अजन्मा – अमर है.

अध्याय 3

अपने कर्म को कभी नहीं बल्क़ि कर्तापन और कर्मफल के विचार को ही छोड़ना है.

अध्याय 4

अपने सारे कर्मों को भगवान को अर्पण करके करना ही कर्म संन्यास है.

अध्याय 5

मैं कर्ता हूँ…! यह भाव ही अहंकार है. जिसे त्यागना और सम रहना ही ज्ञान मार्ग है.

अध्याय 6

अपने मन को आत्मसंयम के बिना नहीं जीता जा सकता…! और बिना मन जीते

योग नहीं हो सकता.

अध्याय 7

भक्ति का कारण त्रिकालदर्शी भगवान को जानना ही होना चाहिये. यही ज्ञानयोग है.

अध्याय 8

भगवान ही ज्ञान और ज्ञेय हैं. ज्ञेय को ध्येय बनाना योगमार्ग का द्वार है.

अध्याय 9

अपने जीव का लक्ष्य स्वर्ग नहीं भगवान से मिलन होना चाहिये.

अध्याय 10

परम कृपालु सर्वोत्तम ही नहीं बल्कि… अद्वितीय हैं.

अध्याय 11

यह जग भी भगवान का स्वरूप है. चिन्ताएँ मिटाने का प्रभुचिन्तन ही उपाय है.

अध्याय 12

बिना पूर्ण समर्पण और अनन्यता भक्ति नहीं हो सकती और बिना भक्ति भगवान्

नहीं मिल सकते.

अध्याय 13

हर शरीर में जीवात्मा परमात्मा का अंश है. जिसे परमात्मा का प्रकृतिरूप भरमाता है.

यही तत्व ज्ञान है.

अध्याय 14

प्रकृति प्रदत्त तीनों गुण बंधन देते हैं…! इनसे पार पाकर ही मोक्ष संभव है.

अध्याय 15

काया तथा जीवात्मा दोनों से उत्तम पुरुषोत्तम ही जीव का लक्ष्य हैं.

अध्याय 16

काम – क्रोध – लोभ से छुटकारा पाये बिना जन्म – मृत्यु के चक्कर से छुटकारा

नहीं मिल सकता.

अध्याय 17

त्रिगुणी जगत् को देखकर दु:खी नहीं होना चाहिये. बस… स्वभाव को सकारात्मक

बनाने का प्रयास करना चाहिये.

अध्याय 18

शरणागति और समर्पण ही जीव का धर्म है और यही है गीता का सार.

 🙏जय श्री कृष्णा 🙏

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