Maa Status – मां – संकल्पनात्मक मुल्यांकन – माँ पर सुविचार

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Maa Status - मां - संकल्पनात्मक मुल्यांकन - माँ पर सुविचार
Maa Status - मां - संकल्पनात्मक मुल्यांकन - माँ पर सुविचार

Maa Status – मां – संकल्पनात्मक मुल्यांकन – माँ पर सुविचार

जब एक बेटा बड़ा होता है तो, वह अपनी अलग अलग उम्र में
अपनी मां के व्यवहार का एक प्रकार से वैचारिक मूल्यांकन करता है.
वह अपनी हर उम्र में अपनी मां के बारे में अलग – अलग विचार रखता है.
जैसे…

उम्र – २ वर्ष – कहाँ है मम्मी…? कहा चली गई मम्मी, मम्मी…! मम्मी…!
मम्मी कहां हो…? और रोना सुरु कर देता है.
उम्र ५ वर्ष – मम्मी कहां हो…? मैं स्कूल जा रहा हूँ… अच्छा मम्मी… बाय – बाय.
उम्र – ९ वर्ष – मम्मी आज क्या बनाया है, कल आपने बेगन की सब्ज़ी दि थी,
मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं आई. आज टिफिन में क्या दे रही हो…?
मम्मी आज स्कूल में बहुत होम वर्क मिला है…
उम्र – १३ वर्ष – पापा मम्मा कहाँ है…? स्कूल से आते ही मम्मी नहीं दिखती
तो मुझे अच्छा नहीं लगता…
उम्र – १५ वर्ष – मम्मी मेरे पास बैठो ना, आज स्कुल में क्या हुआ पता है….
उम्र १७ वर्ष – मम्मी मुझे दोस्त के यहां जन्मदिन मे जाना है, पापा मना कर रहे हैं….
प्लीज मुझे जाने दो, आप पापा को बताओ ना…!
उम्र – २१ वर्ष – क्या मम्मी आप भी ना…? आपको कुछ समझता ही नहीं,
आपको ये नये जमाने का कुछ पता नहीं है.
उम्र – २४ वर्ष – मां आप जब देखो तब मुझे उपदेश देती रहती हो
अब मैं कोई दुध पीता हुआ बच्चा नहीं…!
उम्र – २७ वर्ष – मम्मी आप भी ना… वो मेरी पत्नी है, आप समझा करो ना,
वो नये जमाने के हिसाब से है…
आप अपनी मानसिकता बदलो ना मम्मी…
उम्र – ३० वर्ष – मम्मी वो भी माँ है, उसे अपने बच्चों को सम्भालना आता है,
आप हर बात में दखलंदाजी मत किया करो… प्लीज़.

फिर इसके बाद बेटा अपनी मम्मी कुछ पुछता नहीं और मम्मी कब
बूढ़ी हो गयी, बेटे को पता ही नहीं. उसकी मम्मी तो आज भी वो ही हैं…
बस उम्र के साथ बच्चों के अंदाज़ बदल जाते हैं…!
उम्र – ५० वर्ष – फ़िर एक दिन… मम्मी – मम्मी चुप क्यों हो…?
कुछ तो बोलो ना, लेकिन मम्मी कुछ नहीं बोलती.
खामोश हो गयी… हमेशा के लिए….

माँ, २ वर्ष से ५० वर्ष के, इस बदलाव को कभी समझ ही नहीं पायी, क्योंकि
माँ के लिये तो ५० वर्ष का प्रौढ़ भी… बच्चा ही हैं, वो बेचारी तो आख़िर तक
बेटे की छोटी सी तकलीफ पर, वैसे ही तड़प जाती, जैसे उस के बचपन में
तडपती थी. और बेटे को माँ के जाने के बाद ही पता चलता है की कि उसने
क्या अनमोल खजाना खो दिया…?

पुरी ज़िन्दगी बीत जाती है, कुछ अनकही और अनसुनी बातें बताने कहने के लिए,
माँ का सदा आदर सत्कार करें, उन्हें भी समझें और कुछ अनमोल वक्त
उनके साथ भी बिताएं, क्योंकि समय गुज़र जाता है, लेकिन माँ कभी वापिस
नहीं मिलती…! कभी वापस नहीं मिलती…!

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बच्चों की किलकारियाँ
यु ही नहीं गूँजती
घर के हर कोने में….
जान हथेली पर रखनी पड़ती है
माँ को माँ होने मे.

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